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शर्मसार होता भारत ……….

सहज प्रवाह
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शर्मसार होता भारत…..दिल्ली में हुई गैंगरेप की घटना वाकई देश को शर्मसार करने वाली है। विश्वास नहीं होता, आज मानवता कहाँ खो गयी है? देश को ये क्या हो गया है? हमारे ही देश के लोग पिशाची क्रीडा में इस हद तक लिप्त हो सकते है कि वो मानवता को तार तार कर दें और स्वयं के क्षणिक आनंद के लिए, मस्ती के लिए अपनी सी मानव देह को इस हद तक प्रताडित कर दें की वो अमानवीय लगे। अमानवीय ही क्यो? ……इस घिनौनी घटना में लिप्त मानव तन लिए उन नर पिशाचों के लिए कुछ कहना भी अशोभनीय है। मर्द होने का कतई ये मतलब नहीं की वो नारी देह को रौदता फिरे। ये काम मर्दो का नहीं …..दुःशासनों का है। अरे ! दुःशासन भी शायद कुछ मर्यादा में रहा होगा परंतु यहां तो इन सबों ने सारी हदें पार कर दी।
इस कुकृत्य ने सभी देशवासियों का सिर शर्म से झुका दिया है।
शोचनीय है ये घटना…….शोचनीय है देश के हालात। हम जहाँ कहते फिर रहे है कि हमारा भारत – युवा भारत, युुवा शक्ति से लैस….पर हम क्यों नहीं कह पाते आज का भारत संस्कारहीन भारत जहाँ पर देह के नारी स्वरुप की अवमानना की जा रही है। हम देह को भोगवादी दृष्टि से देखते है। क्यों? क्या सिर्फ नारी का देह कुचलने के लिए है? आज नारी शक्ति के बारे में बात की जाती है पर नारी की सुरक्षा के बारे में सोचना भी तो देश के कर्णधारों का दायित्व है।
जब राजधानी में ही असुरक्षा का माहौल बढ रहा है तो अन्य स्थलों के विषय में तो कुछ भी कहना बेकार है। साथ ही मेरा विचार है कि इस अपराध में लिप्त सभी आरोपियों जल्द से जल्द इनके किये के मुताबिक सजा दी जाये। वैसे देश की हालात इन मसलों में बद से बदतर होती जा रहीें है। ये कोई एक मामला नहीं …. देश में न जाने कितनी भोली भाली लडकियाँ इस भोग वादी परम्परा का शिकार होती है, बलि चढाई जाती है। हद तक तब होती है जब रिश्तोें को भी तार तार कर दिया जाता है। इन वारदातों के पीछे छिपे कारणों पर बहस की आवश्यकता है,न सिर्फ सजा देकर अपने दायित्व की इति श्री कर लेना। भारत सरकार को इस दिशा में अपना पुनर्मूल्यांकन करना चाहिए कि वह देश में खासतौर से देश की राजधानी में सुरक्षा के पुख्ता इंतजामो की बात करती है क्या वास्तव में वे इंतजाम सही ढंग से किये गये हैं ? या सिर्फ दिखावा !
जरा विचार करे………..
आज वास्तव में संस्कार की छवि कहीं धूमिल पड गयी है। आज के इस भोगवादी युग में भोगवादी मानसिकता मानुषता की चीर फाड करने में लगी है। हमारी सोच ही हमारे व्यक्तित्व के निर्माण में सहयोगी है। आज भारत में क्या संपूर्ण विश्व में कोढ की तरह कुत्सित विचारों का प्रसार बडी तीव्रता से हुआ है। भारतीय परम्परा के संस्कार कहीं गड चुके हैं अथवा उनकों प्रेषित करने वाले हम सबों में कहीं न कहीं व्यक्तिगत कमजोरी जो कथनी करनी में अंतर को इंगित करती है, पैठ चुकी है। भारतीय समाज में पाश्चात्य सभ्यता के संस्कारों की घुसपैठ ने भारतीयों के सनातन विचारों की मानों होली ही जला डाली है। आज समाज में बढता व्याभिचार इसी का परिणाम है।
हम भारतीय खुश होते है अपने भारत का आंकडों में कैद साक्षरता दर (लगभग 74 प्रतिशत) को जानकर परंतु क्या है हमारे यहाँ साक्षर होने की परिभाषा इस पर बिना विचार किये ही….हमारे मुल्क में मात्र जो लिखना-पढना जानता हो वह साक्षर है। या जो केवल अपना नाम लिखना भी जानता हो वह भी साक्षर । तब साक्षरता का प्रतिशत तो बढा परंतु क्या वास्तव में साक्षर होना, शिक्षित होना है? क्या संस्कारों के अभाव में शिक्षित हुआ जा सकता है।
फिर एक बात यथा राजा तथा प्रजा। हमारे देश में आज मौजूदा समय में ऐसे-ऐसे नेता मौजूद है जो खुद को लव गुरु से कम नहीं समझते। अरे! कौन कहता है कि प्यार मत करो परंतु प्यार नहीं चाहता की उसकी नुमाईश की जाये और जिस चीज की नुमाईश की जाती है -वो प्यार नहीं मात्र दिखावा है या छल। आज वास्तव में दिखावा बढ रहा है और इस दिखावे में अस्मिता लुट रही है।
कहें तो क्या ? क्या कहने भर से समस्याओं का समाधान मिल जाता है? नहीं, लेकिन किसी समस्या पर विचार किये बिना भी तो कोई समाधान नहीं दीख पडता।
यदि हम समस्या को समस्या बनकर ही सुलझाने की कोशिश करेंगें तो कभी तक भी हम उस समस्या का समाधान नहीं खोज सकते।

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