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राजनीति या भ्रष्ट नीति……….

सहज प्रवाह
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राजनीति या भ्रष्ट नीति……….
जिस तरह की बयान बाजी उ0प्र0 सरकार द्वारा की जा रहीं है कि उ0 प्र0 को बिना आई0ए0एस0 अधिकारियों के बगैर भी चलाया जा सकता है ……..तो साफ जाहिर है कि लोकतंत्र में राजनीति अपने स्वार्थहितों के लिए कितना गिर सकती है। हां सही है कि सोनिया गांधी जी ने उस वक्त कार्यवाही क्यों नहीं की या पत्र क्यों नहीं लिखा प्रधानमंत्री जी को जब उनके जमाई राजा राबर्ड वाड्रा के बचाव के लिए हरियाणा सरकार ने अफसर का तबादला कर दिया था – कांग्रेस का ये रुख तो पक्षपात की रुपरेखा प्रस्तुत करने वाला सिद्ध हुआ परंतु इस वक्त सोनिया जी ने अपनी गलती में सुधार करते हुए कदम ठीक ही उठाया ।-
एक अधिकारी को खनन माफिया के हितों को ध्यान में रखते हुए निलंबित कर दिया जाता है और फिर जांच के नाम पर लिपा पोती कर दी जाती है और इस पूरे प्रकरण को धार्मिक कारणों से जोड दिया जाता है – ये सब बातें हजम नहीं होती इस तरह तो संाप्रदायिकता और अराजकता फैलने में भी कोई कोर कसर नहीं रहेंगी। इस तरह धार्मिक आड लेकर सपा एक ओर तो एक विशेष वर्ग को अपने साथ खडा करना चाहती है । दूसरी ओर अपनी गलती पर पर्दा डालने की कोशिश भी कर रहीं हैपर सरकार को समझना होगा कि अब इस तरह के मुद्दों को उठाकर और असल मुद्दों को दबाकर वो जनता का बेवकूफ नहीं बना सकती है। जनता ने गलती की है तो अग्रिम चुनावों में इसका जवाब भी जनता ही देगी। सभी राजनीति पार्टियां जब इस तरह से जनता के साथ छल करेगी तो उसे मुंह की खानी पडेगी। जब आई0ए0एस0 अधिकारियों के बगैर राज्य की व्यवस्था चलायी जा सकती है तो क्या राज्य को इन दबंग पार्टियों के बगैर नहीं चलाया जा सकता क्या?…….जब जन प्रतिनिधि ही जनता के साथ धोखा करें तो उसे जनप्रतिनिधि,  नायक, या नेता बनने का कोई अधिकार नहीं है, कोई अधिकार नहंी है। मात्र लुभावनी योजना को चलाकर – लैपटाप बांटने से या फिर हजारों रुपयों की ,खैरात देने से जनता का कुछ भला नहंी होने वाला है । भला होगा भी कैसे लैपटाप कोई कमा कर तो देगा नहीं फिर राज कोश इन लुभावनी योजना में खर्च होता रहेगा और जो वास्तविक योजनाएं अधर में लटकी ह ैवें अधर में लटकी ही रहेंगी या फाइलों में कागजी रुप से पूर्ण कर दी जायेगी।  इस तहर तो जनता के पैसे का ही दुरुपयोग किया जा रहा है और जनता से ही उम्मीद की जा रही है कि वा आगामी चुनाव में ऐसी पार्टियों को वोट देकर विजयी बनायें – ये तो अपना उल्लू सीधा करने वाली बात हुई ना। सरकार अपना चैखा रंग दिखाना चाह रही है पर चैखा रंग होता क्या है ये उसे मालूम नहीं!
ये सिर्फ उ0प्र0 की कहानी नहीं है ये तो समस्त भारत के राज्यों की दासता है जो जनता को छल रहें है और अपनी झोली भर रहें है। जनता भोली क्यूं बनी है आज तक ? ……….जनता भोली ये कहावत कुछ ऐसी लगती है जैसे हम सभी को (जनता को) गाली दी जा रही हो………जनता भोली जनता बेचारी। बेचारी और भोली कब तक बनी रहेगी जनता……….कभी धर्म के नाम पर, कभी सम्प्रदाय के नाम पर, कभी जाति के नाम पर , कभी पार्टियों के नाम पर , कभी राज्यों के नाम पर , कभी भाषा के नाम पर ,…….न जाने किस किस के नाम पर इस भोली जनता को छला जाता रहा है और देश की अंखडता को खंडित किया जा रहा है । क्षेत्रवाद, जातिवाद और भाषावाद ही नहीं बहुतेरे हथकंडे होते है जनता को उलझाये रखने के लिए इन राजनेताओं के पास । ये दिन रात पासे फेंकतें है – तो सिर्फ इस लिए कि कब कुर्सी इनके कब्जे में आये और इन्हें अपनी लूट मचाने का अवसर मिल जाये। काले अंग्रेज है……….गोरे अंग्रेजों से कहीं ज्यादा खतरनाक!…….गोरे तो फिर गैर थे पर ये हमारे अपने ही है , हमारे बीच से ही है, हमीे ने चुन-चुन कर भेजा है इन्हें कुर्सियों पर और हमीं को मिली है – बंटवारें की सौगात।
फूट डालों राज्य करों की अंग्रेजी नीति को ये काले अंग्रेज बार-बार आजमाते हैं और निश्चित रुप से इस हथकंडे में ये सफल भी होतें है क्योंकि जनता बेचारी है , भोली है! पर कब तक? …………..
वर्षाें से युवा वर्ग अधिकारी बनने के सपने देखता है और सिर्फ देखता ही नहीं बनने के लिए रात दिन एक करता है, कठिन परिश्रम के बाद किसी भाग्यशाली का सपना पूरा होता है और वो सेवा के क्षेत्र में उतरता है परंतु जब वो पूरे आदर्शाें के साथ, पूरी ईमानदारी के साथ , पूरी शिद्दत के साथ अपने कार्य को करता है तो ये बात कुछ लोगों को रास नहीं आती – ये वे लोग होते है जो या तो नेता होते है या नेताओं के खास ….ये ऐसे लोग होते है जो वर्षों से बेईमानी के धंधे को बढाते आ रहें है निजी स्वार्थो के लिए यदि इन्हें अफसर भी इन्हीं के जैसे मिल जाते हैं तो सबकुछ ठीक ठाक चलता है पर जब कोई स्वार्थो से ऊपर उठकर देशहित में कार्य करने की कोशिश करता है तो उसका या तो सफाया कर दिया जाता है या फिर निलंबन, तबादला आदि से उसे उसके द्वारा किये गये कार्य को पूरा ही नहीं करने दिया जाता ……ये सब अब जग जाहिर है कि एक छोटा सा दारोगा भी अपने से बडे अफसर को , अधिकारी को या नेताओं को भेंट स्वरुप लक्ष्मी सौंपता ंहै, इसके लिए वो अपनी तनख्वाह का प्रयोग नहीं करता बल्कि वो छोटे मोटे गुंडों को पनपने देता है और अपराध फैलता है …..पुलिस का महकमा खास तौर से यू0पी0 में इतना सक्रिय रहता है कि इन्हें सब पता होता हैै कि अपराधी कहाँ दुबका है और जब जी चाहा ये अपराधियों को अपने तरीके से इस्तेमाल भी करते है। अपराध के घंटों बाद पुलिस को पहुंचना – जो वर्षाे से एक परम्परा ही बन गयी है शायद इसी ओर इशारा करती है कि पुलिस और चोर का आपस में याराना होता है , इन अपराधों के बढने केा मुख्य कारण है रिश्वत का बाजार गर्म होना, भ्रष्टतंत्र का पनपना और जो कोई इसके खिलाफ हो उसका सफाया ….किसी भी कीमत पर …….मुख्यमंत्रीजी बच्चों को उदाहरण देते है कि क्या जब उनसे गलती होती थी तो उनके अध्यापक उन्हे मारते नहीं थे या सजा नहीं देते थे? इसी तरह वो अफसरों पर लगाम कसे रहने के लिए सजा को जायज ठहराते है कुछ हद तक ये उदाहरण तो सही हो सकता है परंतु सजा तब दी जानी चाहिए जब पुख्ता सबूत हाथ लगे हो परंतु मात्र राजनीति के लिए , कुछ अपने चहेतो के वास्ते ये कदम उठाना एकदम फिजूल दिखता है ……..इससे आप अराजकता फैलाने में स्वयं भी शामिल हो जाते है…..फिर आप स्वतंत्र भारत में ऐसी बात करते है तो लगता है हम सभी भारत वासी अभी आजाद नहीं है हम कहीं न कहीं मानसिक गुलाम है ….
राजनीति यू ंतो अपने प्रारम्भिक समय से ही छल प्रपंचों से सनी हुई है परंतु फिर भी साम दाम दंड भेद की राजनीति में नीति का होना आवश्यक है क्योंकि यदि राजनीति को वास्तविक स्वरुप प्रदान करना है , उसे गरिमा के साथ कायम रखना है तो उसमें नीति नियमों, कायदे कानून को बाखूबी निभाना चाहिए। फिर ये सभी दुर्घटनाऐं देश को अंातरिक रुप से कमजोर करती हैं। देश के लिए सुनने सुनाने वाला कोई नहीं बचता । जब सारे राजनेता, सारी पार्टियां अपनी अपनी ढपली अपना अपना राग आलापने लगते है तो तब बू आती है स्वार्थ की और देश कहीं पीछे छूट जाता है …..विकास की बडी बडी बातें करना आसान हो सकता है पर विकास का हिस्सा बनना एक अलग बात है …..जनप्रतिनिधियों को जनता की भावना की कद्र करना सीखना चाहिए…….
-‘सत्येन्द्र कात्यायन

जिस तरह की बयान बाजी उ0प्र0 सरकार द्वारा की जा रहीं है कि उ0 प्र0 को बिना आई0ए0एस0 अधिकारियों के बगैर भी चलाया जा सकता है ……..तो साफ जाहिर है कि लोकतंत्र में राजनीति अपने स्वार्थहितों के लिए कितना गिर सकती है। हां सही है कि सोनिया गांधी जी ने उस वक्त कार्यवाही क्यों नहीं की या पत्र क्यों नहीं लिखा प्रधानमंत्री जी को जब उनके जमाई राजा राबर्ड वाड्रा के बचाव के लिए हरियाणा सरकार ने अफसर का तबादला कर दिया था – कांग्रेस का ये रुख तो पक्षपात की रुपरेखा प्रस्तुत करने वाला सिद्ध हुआ परंतु इस वक्त सोनिया जी ने अपनी गलती में सुधार करते हुए कदम ठीक ही उठाया ।-

एक अधिकारी को खनन माफिया के हितों को ध्यान में रखते हुए निलंबित कर दिया जाता है और फिर जांच के नाम पर लिपा पोती कर दी जाती है और इस पूरे प्रकरण को धार्मिक कारणों से जोड दिया जाता है – ये सब बातें हजम नहीं होती इस तरह तो संाप्रदायिकता और अराजकता फैलने में भी कोई कोर कसर नहीं रहेंगी। इस तरह धार्मिक आड लेकर सपा एक ओर तो एक विशेष वर्ग को अपने साथ खडा करना चाहती है । दूसरी ओर अपनी गलती पर पर्दा डालने की कोशिश भी कर रहीं हैपर सरकार को समझना होगा कि अब इस तरह के मुद्दों को उठाकर और असल मुद्दों को दबाकर वो जनता का बेवकूफ नहीं बना सकती है। जनता ने गलती की है तो अग्रिम चुनावों में इसका जवाब भी जनता ही देगी। सभी राजनीति पार्टियां जब इस तरह से जनता के साथ छल करेगी तो उसे मुंह की खानी पडेगी। जब आई0ए0एस0 अधिकारियों के बगैर राज्य की व्यवस्था चलायी जा सकती है तो क्या राज्य को इन दबंग पार्टियों के बगैर नहीं चलाया जा सकता क्या?…….जब जन प्रतिनिधि ही जनता के साथ धोखा करें तो उसे जनप्रतिनिधि,  नायक, या नेता बनने का कोई अधिकार नहीं है, कोई अधिकार नहंी है। मात्र लुभावनी योजना को चलाकर – लैपटाप बांटने से या फिर हजारों रुपयों की ,खैरात देने से जनता का कुछ भला नहंी होने वाला है । भला होगा भी कैसे लैपटाप कोई कमा कर तो देगा नहीं फिर राज कोश इन लुभावनी योजना में खर्च होता रहेगा और जो वास्तविक योजनाएं अधर में लटकी ह ैवें अधर में लटकी ही रहेंगी या फाइलों में कागजी रुप से पूर्ण कर दी जायेगी।  इस तहर तो जनता के पैसे का ही दुरुपयोग किया जा रहा है और जनता से ही उम्मीद की जा रही है कि वा आगामी चुनाव में ऐसी पार्टियों को वोट देकर विजयी बनायें – ये तो अपना उल्लू सीधा करने वाली बात हुई ना। सरकार अपना चैखा रंग दिखाना चाह रही है पर चैखा रंग होता क्या है ये उसे मालूम नहीं!

ये सिर्फ उ0प्र0 की कहानी नहीं है ये तो समस्त भारत के राज्यों की दासता है जो जनता को छल रहें है और अपनी झोली भर रहें है। जनता भोली क्यूं बनी है आज तक ? ……….जनता भोली ये कहावत कुछ ऐसी लगती है जैसे हम सभी को (जनता को) गाली दी जा रही हो………जनता भोली जनता बेचारी। बेचारी और भोली कब तक बनी रहेगी जनता……….कभी धर्म के नाम पर, कभी सम्प्रदाय के नाम पर, कभी जाति के नाम पर , कभी पार्टियों के नाम पर , कभी राज्यों के नाम पर , कभी भाषा के नाम पर ,…….न जाने किस किस के नाम पर इस भोली जनता को छला जाता रहा है और देश की अंखडता को खंडित किया जा रहा है । क्षेत्रवाद, जातिवाद और भाषावाद ही नहीं बहुतेरे हथकंडे होते है जनता को उलझाये रखने के लिए इन राजनेताओं के पास । ये दिन रात पासे फेंकतें है – तो सिर्फ इस लिए कि कब कुर्सी इनके कब्जे में आये और इन्हें अपनी लूट मचाने का अवसर मिल जाये। काले अंग्रेज है……….गोरे अंग्रेजों से कहीं ज्यादा खतरनाक!…….गोरे तो फिर गैर थे पर ये हमारे अपने ही है , हमारे बीच से ही है, हमीे ने चुन-चुन कर भेजा है इन्हें कुर्सियों पर और हमीं को मिली है – बंटवारें की सौगात।

फूट डालों राज्य करों की अंग्रेजी नीति को ये काले अंग्रेज बार-बार आजमाते हैं और निश्चित रुप से इस हथकंडे में ये सफल भी होतें है क्योंकि जनता बेचारी है , भोली है! पर कब तक? …………..

वर्षाें से युवा वर्ग अधिकारी बनने के सपने देखता है और सिर्फ देखता ही नहीं बनने के लिए रात दिन एक करता है, कठिन परिश्रम के बाद किसी भाग्यशाली का सपना पूरा होता है और वो सेवा के क्षेत्र में उतरता है परंतु जब वो पूरे आदर्शाें के साथ, पूरी ईमानदारी के साथ , पूरी शिद्दत के साथ अपने कार्य को करता है तो ये बात कुछ लोगों को रास नहीं आती – ये वे लोग होते है जो या तो नेता होते है या नेताओं के खास ….ये ऐसे लोग होते है जो वर्षों से बेईमानी के धंधे को बढाते आ रहें है निजी स्वार्थो के लिए यदि इन्हें अफसर भी इन्हीं के जैसे मिल जाते हैं तो सबकुछ ठीक ठाक चलता है पर जब कोई स्वार्थो से ऊपर उठकर देशहित में कार्य करने की कोशिश करता है तो उसका या तो सफाया कर दिया जाता है या फिर निलंबन, तबादला आदि से उसे उसके द्वारा किये गये कार्य को पूरा ही नहीं करने दिया जाता ……ये सब अब जग जाहिर है कि एक छोटा सा दारोगा भी अपने से बडे अफसर को , अधिकारी को या नेताओं को भेंट स्वरुप लक्ष्मी सौंपता ंहै, इसके लिए वो अपनी तनख्वाह का प्रयोग नहीं करता बल्कि वो छोटे मोटे गुंडों को पनपने देता है और अपराध फैलता है …..पुलिस का महकमा खास तौर से यू0पी0 में इतना सक्रिय रहता है कि इन्हें सब पता होता हैै कि अपराधी कहाँ दुबका है और जब जी चाहा ये अपराधियों को अपने तरीके से इस्तेमाल भी करते है। अपराध के घंटों बाद पुलिस को पहुंचना – जो वर्षाे से एक परम्परा ही बन गयी है शायद इसी ओर इशारा करती है कि पुलिस और चोर का आपस में याराना होता है , इन अपराधों के बढने केा मुख्य कारण है रिश्वत का बाजार गर्म होना, भ्रष्टतंत्र का पनपना और जो कोई इसके खिलाफ हो उसका सफाया ….किसी भी कीमत पर …….मुख्यमंत्रीजी बच्चों को उदाहरण देते है कि क्या जब उनसे गलती होती थी तो उनके अध्यापक उन्हे मारते नहीं थे या सजा नहीं देते थे? इसी तरह वो अफसरों पर लगाम कसे रहने के लिए सजा को जायज ठहराते है कुछ हद तक ये उदाहरण तो सही हो सकता है परंतु सजा तब दी जानी चाहिए जब पुख्ता सबूत हाथ लगे हो परंतु मात्र राजनीति के लिए , कुछ अपने चहेतो के वास्ते ये कदम उठाना एकदम फिजूल दिखता है ……..इससे आप अराजकता फैलाने में स्वयं भी शामिल हो जाते है…..फिर आप स्वतंत्र भारत में ऐसी बात करते है तो लगता है हम सभी भारत वासी अभी आजाद नहीं है हम कहीं न कहीं मानसिक गुलाम है ….

राजनीति यू ंतो अपने प्रारम्भिक समय से ही छल प्रपंचों से सनी हुई है परंतु फिर भी साम दाम दंड भेद की राजनीति में नीति का होना आवश्यक है क्योंकि यदि राजनीति को वास्तविक स्वरुप प्रदान करना है , उसे गरिमा के साथ कायम रखना है तो उसमें नीति नियमों, कायदे कानून को बाखूबी निभाना चाहिए। फिर ये सभी दुर्घटनाऐं देश को अंातरिक रुप से कमजोर करती हैं। देश के लिए सुनने सुनाने वाला कोई नहीं बचता । जब सारे राजनेता, सारी पार्टियां अपनी अपनी ढपली अपना अपना राग आलापने लगते है तो तब बू आती है स्वार्थ की और देश कहीं पीछे छूट जाता है …..विकास की बडी बडी बातें करना आसान हो सकता है पर विकास का हिस्सा बनना एक अलग बात है …..जनप्रतिनिधियों को जनता की भावना की कद्र करना सीखना चाहिए…….

-‘सत्येन्द्र कात्यायन

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