सहज प्रवाह
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बहनो का सिंदूर छीना है
माताओ का लाल
ऐ वैरी तू कायर बन
छिप छिप करता वार
लडना है तो
मैदानों में खुले आम आ कर के देख
चीर के रख देंगे
नक्शे से मिट जायेगा नाम
छिपकर क्यूं करता है वार
वीर शहीदों की विधवाओं के
आंसू में तू बह जायेगा
जिस माता का लाल मिटा
उसका श्राप तूझे खायेगा
छिप ले जितना छिपना तुझको
काल तेरा भी आयेगा
वीर नहीं है कम हुए वतन में
चाहे हो नेता गददार……..
-सत्येन्द्र कात्यायन
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