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हम स्वतंत्र है!………….

सहज प्रवाह
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हम स्वतंत्र है!………….
कहीं बलात्कार …., कहीं हत्याएं….. लूटपाट… आगजनी,…..मासूमों के साथ यौन शोषण ……….कहां जा रहा है हमारा समाज !……….सब कुछ बिखर रहा है…..संवेदनाएं टूट रहीं है…..सत्य मौन बैठा है……सभ्य सिर झुकाये है..अपराधी सिर उठाकर खुल्ले घूमते है। …….हम स्वतंत्र है! ऐसे स्वतंत्र जिसमें हम अपनी जान को कब खो बैठे ……कब कोई बेटी बलात्कार का शिकार हो जाये………कब कोई बच्ची हैवानियत के चंगुल में आ जाये……..कब बेरहमी से हत्याएं कर दी जायें……….ये कभी भी कहीं भी हो सकता है क्योंकि हम स्वतंत्र है हम स्वतंत्र है……………क्या वाकई हम स्वतंत्र है?……क्या वाकई हम सुरक्षित है?……..क्या वाकई ये सब ही स्वतंत्र होना होता है………कानून ये चीजे लाता है समाज में…….व्यवस्था इसी का नाम है! ……खूनी सडकें हो गयी है……..दुश्सासनों की संख्या में खास बढोत्तरी है? ….अब दुश्सासन चीर हरण ही नहीं करता वरन खेलता है नंगा नाच। ……..क्या इसलिए आजादी पायी हमने?….इसीलिए बलिदान हुए हजारो वीर……..इसीलिए !……………………….यही सब स्वतंत्रता है तो मैं ऐसी स्वतंत्रता को कुबूल नहंी करता मैं परतंत्र होना चाहता हूं…….मैं भारत का नागरिक हूं मैं कैद होना चाहता हूं अपनी सुरक्षा के लिए , मैं नहंी चाहता कि मेरे अपने ही मेरी हत्या की साजिश रचे……मेरे मुल्क में ही भाई भाई का खून बहा दें……बहनों की लाज सरेराह लूट ली जाये……..मै ही क्यूं हम सब भारतीय परतंत्रता चाहेंगे…..ऐसे परतंत्रता जहां हम घरौंदों में छुपकर रहें …….जहां न साक्षर होने की ख्वाहिश हो ना कानून व्यवस्था पर तंज कसने का अवसर………ये स्वतंत्रता मुझे बर्दाश्त नहंी ….नहीं झेल सकता इसे….मेरे बूढे भारत क्या मिला स्वतंत्र होके……सब खा गये ये लंबे कुर्ते वाले ….बस! तुझे मिली तो सिर्फ पीडाऐं……..अरे! तेरा दिल दिल्ली कांप रहा है…..अपनी यादों में समेटे का तू एक अखंड भारत पर आज इसे तेरे ही बाशिदें…रहनुमा कर रहे है तार तार … हे मां भारती! तब तू बेडियों में थी पर आज तो निर्वस्त्र है चैरोहों पर ……..यही सब मिला है तुझे स्वतंत्रता के बाद ………..चैनों अमन की बातें करते करते हम कब अमन को दफन करके चैन से सो जाते है ये सोचने का वक्त कहां ! मां भारती के सीने को छलनी किये जा रहें है ……उसकी आह तक हमें नहीं सुनती …….क्योकि हम स्वतंत्र है!…………………………
रोता बिलखता स्वतंत्र नागरिक
सत्येन्द्र कात्यायन

हम स्वतंत्र है!………….

कहीं बलात्कार …. कहीं हत्याएं….. लूटपाट… आगजनी…..मासूमों के साथ यौन शोषण ……….कहां जा रहा है हमारा समाज !……….सब कुछ बिखर रहा है…..संवेदनाएं टूट रहीं है…..सत्य मौन बैठा है……सभ्य सिर झुकाये है..अपराधी सिर उठाकर खुल्ले घूमते है। …….हम स्वतंत्र है! ऐसे स्वतंत्र जिसमें हम अपनी जान को कब खो बैठे ……कब कोई बेटी बलात्कार का शिकार हो जाये………कब कोई बच्ची हैवानियत के चंगुल में आ जाये……..कब बेरहमी से हत्याएं कर दी जायें……….ये कभी भी कहीं भी हो सकता है क्योंकि हम स्वतंत्र है हम स्वतंत्र है……………क्या वाकई हम स्वतंत्र है?……क्या वाकई हम सुरक्षित है?……..क्या वाकई ये सब ही स्वतंत्र होना होता है………कानून ये चीजे लाता है समाज में…….व्यवस्था इसी का नाम है! ……खूनी सडकें हो गयी है……..दुश्सासनों की संख्या में खास बढोत्तरी है? ….अब दुश्सासन चीर हरण ही नहीं करता वरन खेलता है नंगा नाच। ……..क्या इसलिए आजादी पायी हमने?….इसीलिए बलिदान हुए हजारो वीर……..इसीलिए !……………………….यही सब स्वतंत्रता है तो मैं ऐसी स्वतंत्रता को कुबूल नहंी करता मैं परतंत्र होना चाहता हूं…….मैं भारत का नागरिक हूं मैं कैद होना चाहता हूं अपनी सुरक्षा के लिए , मैं नहंी चाहता कि मेरे अपने ही मेरी हत्या की साजिश रचे……मेरे मुल्क में ही भाई भाई का खून बहा दें……बहनों की लाज सरेराह लूट ली जाये……..मै ही क्यूं हम सब भारतीय परतंत्रता चाहेंगे…..ऐसे परतंत्रता जहां हम घरौंदों में छुपकर रहें …….जहां न साक्षर होने की ख्वाहिश हो ना कानून व्यवस्था पर तंज कसने का अवसर………ये स्वतंत्रता मुझे बर्दाश्त नहंी ….नहीं झेल सकता इसे….मेरे बूढे भारत क्या मिला स्वतंत्र होके……सब खा गये ये लंबे कुर्ते वाले ….बस! तुझे मिली तो सिर्फ पीडाऐं……..अरे! तेरा दिल दिल्ली कांप रहा है…..अपनी यादों में समेटे का तू एक अखंड भारत पर आज इसे तेरे ही बाशिदें…रहनुमा कर रहे है तार तार … हे मां भारती! तब तू बेडियों में थी पर आज तो निर्वस्त्र है चैरोहों पर ……..यही सब मिला है तुझे स्वतंत्रता के बाद ………..चैनों अमन की बातें करते करते हम कब अमन को दफन करके चैन से सो जाते है ये सोचने का वक्त कहां ! मां भारती के सीने को छलनी किये जा रहें है ……उसकी आह तक हमें नहीं सुनती …….क्योकि हम स्वतंत्र है!…………………………

रोता बिलखता स्वतंत्र नागरिक

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