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शिक्षा माफिया ….द अनटोल्ड स्टोरी !

सहज प्रवाह
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shikshamafianakal mafia

_———- सत्येन्द्र कात्यायन, खतौली (मु.नगर)

भारतवर्ष में जहाँ एक ओर शिक्षा क्षेत्र में बड़े पैमाने पर बदलाव का युग प्रारम्भ हो रहा है, अत्याधुनिक तकनीक का प्रयोग शिक्षा क्षेत्र में बढा है, भारत में शिक्षा अब डिजिटलाईजेशन की ओर अपने कदम बढा रही है। शिक्षा-क्षेत्र में हो रहे इस परिवर्तन का स्वागत होना चाहिए किन्तु बेहद दुखद हकीकत यह भी है कि दुनिया के 200 विश्वविद्यालयों में एक भी भारतीय विश्वविद्यालय/शिक्षण संस्था शामिल नहीं है। टाइम्स हायर एजुकेशन के सर्वेक्षण के मुताबिक आई0आई0एस0सी (भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरू) को भी 201 से 250 के वर्ग में स्थान प्राप्त हो पाया है। आई0आई0टी0 बाॅम्बे 351-400 के वर्ग में जगह बना पाई। यदि इस सर्वेक्षण को आधार बनाकर बात की जाये तो भारत में शिक्षा प्रणाली में सुधार और गुणवत्ता के दावे जरूर किये जा रहे हैं परन्तु जमीनी स्तरपर नील बटे सन्नाटा ही नज़र आता है।
शिक्षा- क्षेत्र में सेंध लगाने वाला संगठित अपराध तंत्र है -‘‘शिक्षा माफिया’’। शिक्षा माफिया शब्द तो खूब उछल रहा है पर इस तंत्र पर गंभीर चर्चा होनी अभी बाकी है।…अभी तक इसे हल्के में लिया गया और ये नियम-कायदे-कानून-व्यवस्थाओं को धत्ता बताकर दो कदम आगे बढता रहा। इसकी जडें दिनोदिन गहरी होती जा रही है। जब पूरा शिक्षा तंत्र ही इसकी जद़ में हो तो फिर इसे मनमानी करने से रोकने वाला भी कोई नहीं। उत्तर प्रदेश में नकल का बाजार 5000 करोड़ से भी ज्यादा का है। नकल कराने के तरीके भी समयानुसार शिक्षा माफिया बदलता रहा है। पर्चे/माॅडल पेपर के माध्यम से लेकर ब्लू टूथ डिवाइस आदि आधुनिक तरीकों को भी नकल के लिए अपनाया जाता रहा है। उत्तर प्रदेश में शहरों, कस्बों और देहाती क्षेत्रों में शिक्षा माफिया सक्रिय है। बोर्ड परीक्षाओं के दौरान अखबारों में नकल पकडाते हुए इन माफियाओं के वालिंटयरों की तस्वीरों को हम सभी ने देखा है।
उत्तर प्रदेश और बिहार में 50 हजार से भी कम में बोर्ड परीक्षाओं में पास कराने की गांरटी ये शिक्षा माफिया लेता है। विभिन्न प्रकार की शैक्षिक, राजकीय/गैर-राजकीय प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए भी शिक्षा-माफिया नेटवर्क अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। इसी कारण जहाँ एक ओर मुन्ना भाई बढ रहे हैं वहीं दूसरी ओर पेपर लीक भी धडल्ले से हो रहे हैं। पेपर लीक के लिए अब अत्याधुनिक साधनों का प्रयोग किया जा रहा है जिसमें सोशल मीडिया का प्रचलित माध्यम….व्हाट्सएप्प भी सम्मिलित है। राष्ट्रीय स्तर की परीक्षाओं के पर्चे भी एक के बाद एक लीक होते रहे हैं। शिक्षा माफिया दिल्ली पुलिस परीक्षा, एस0एस0सी0 की परीक्षाओं में कई बार सेंध लगा चुकी है।
सी0बी0एस0सी0 जैसा बडा और मजबूत माना जाने वाला आयोग भी इस माफिया को परास्त नहीं कर सका और सी0बी0एस0सी0 द्वारा आयोजित परीक्षाओं में बहुत बार पर्चे लीक का मामला सामने आया। जी न्यूज के सर्वे के मुताबिक पेपर लीक के कारण वर्ष 2015 में ए0आई0पी0एम0टी0 के 6 लाख 30 हजार छात्रों को पुनः परीक्षा देनी पडी थी और इसके लिए सी0बी0एस0ई0 को करीब 80 करोड रूपये अतिरिक्त खर्च करने पडे़ थे। पाॅलीटेक्नीक परीक्षाओं समेत अनेक प्रतियोगी परीक्षाओं की आंसर की दो घंटे पूर्व ग्राहक अभ्यर्थियों को इस माफिया के माध्यम से व्हाटसएप्प पर उपलब्ध कराई गयी। हालांकि कुछ पेपरर्स को रद्द किया गया जिससे मेहनत करने वाले परीक्षार्थीयों पर दोहरी मार पडी। मीडिया के माध्यम से घटनाएं प्रकाश में आई ..सेना भर्ती परीक्षा में कुछ मुन्ना भाई पकडे गये ,लेखपाल परीक्षा में ऐसा ही हुआ। कुछ पर कार्यवाही हुुई और कुछ माफियाओं को जेल भी हुई लेकिन इन कार्यवाहियों के बावजूद शिक्षा माफिया बाज नहीं आ रहा है। एक छोटी सी दुकान में ही -शुरू हो जाता है शिक्षा का व्यापार, विश्वविद्यालयों से सम्बद्धता , परीक्षा आयोजन, अंकपत्र वितरण…..माने तो एक पूरे विश्वविद्यालय का काम एक छोटी सी दुकान से चल जाता है। दूरस्थ शिक्षा के नाम पर खूब ठगी होती है। सुविधा पसंद और धनाढ्य लोग तो इस प्रक्रिया का आनंद लेते ही है , मजबूरी और लाचारी में गरीब शिकार भी इससे बच नहीं पाता है। एम0बी0ए0, एल0एल0बी0 जैसी बडी-बडी डिग्रियां बेची जा रही है …परीक्षा के नाम पर औपचारिकता।
आज के भौतिकतावादी युग में धन की महत्ता बढी तो धनवादियों ने अपनी अपनी सहुलियत के हिसाब से इसका उपयोग उपभोग करना प्रारंभ कर दिया। शिक्षा का क्षेत्र भी इससे अछूता कहाँ रह पाया?… अधिकांशतः प्राइवेट शिक्षण संस्थाओं में एक बाजार ही दीख पड़ता है। फीस तो मँहगी है ही साथ ही स्कूल/काॅलेज में होने वाली अनेक प्रकार की गतिविधियों , बिल्डिंग फीस (भवन निर्माण शुल्क /मेनटीनेन्स शुल्क), पुस्तकालय शुल्क, आदि सुविधाओं के नाम पर छात्रों से पैसा वसूल किया जाता है। काॅपी, किताबों , विद्यालय वेशभूषा आदि पर दुकानदारों से तय कमीशन ये संस्था संचालक लेते है अथवा विद्यालय को ही दुकान में तब्दील कर दिया जाता है। आम आदमी ऐसे स्कूलों में अपने बच्चों को दाखिल भी नहीं करा पाता। मध्यमवर्गीय झूठी शान में न चाहते इस अतिरिक्त बोझ को ढोता चलता है और आय का बडा हिस्सा इस अवैध वसूली की भेंट चढ़ जाता है। आर0टी0ई0के तहत 6वर्ष- 14 वर्ष तक छात्रों को भी इन प्राइवेट स्कूलों में शिक्षा से वंचित रखा जा रहा है , केवल औपचारिकता के लिए कुछेक बच्चों को एडमिशन दिया जाता है … मानकों के अनुरूप नहीं। चूंकि उनका तो ये धन्धा है इसलिए उन्हें छात्र नहीं ग्राहक चाहिए जो शिक्षा खरीदने में सक्षम हो।….अकेले उत्तरप्रदेश में ही 25 हज़ार से अधिक फर्जी स्कूल चल रहे है। ये आंकडा अभी और बढ़ रहा होगा। फिर देश की बात करें तो ये कितनी भयावह स्थिति होगी। इससे शिक्षा माफिया के पैर और भी मजबूत हो रहे हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार में यह एक संगठित अपराध बन चुका है जिसकी जडे़ देश भर में फैल रही है। इसी कारणवश प्रश्नपत्र लीक होते है और कोई मुन्ना भाई टाॅप करता है जैसा बिहार टाॅपर की कहानी से सब परिचित होंगे जिन्हें अपने विषय का ज्ञान तो दूर सामान्य ज्ञान भी नहीं था। इन सबका खामियाजा भुगतना पड़ता है -दिन रात लगनपूर्वक कडी मेहनत करने वाले परीक्षार्थी को। मैं ये कतई नहीं कह रहा कि सभी जगह ऐसा होता है परंतु अधिकांश भ्रष्टतंत्र के उपासक इन कुकृत्यों में संलिप्त होकर शिक्षा को ही छलने पर आमदा हो जाते हैं।
हम भारत के उज्ज्वल भविष्य की चिंता का ढोंग करते फिरते है , ऐसे सैंकडों नारे लगाते भी नहीं थकते वहीं दूसरी ओर जब बारी कुछ कर गुजरने की आती है तो फुस्स!! …भीड़ का हिस्सा तो सभी है और अधिकतर लोग भीड़ का हिस्सा बने रहना ही पसंद करते है ।‘झमेले में कौन पडे’- इस ब्रह्म वाक्य के निर्वहन में अपने दायित्वों कत्र्तव्यों से मुंह फेर लेते हैं। … हम भारतीयों ने ये ही किया है – हम बहुत बडें द्रष्टा जो ठहरे ! …हमें विधाता ने देखने और अफसोस जताने की अतुलनीय क्षमता दी है जिसका हम सदैव उपयोग करते है!…हम देखते है …अफसोस जताते है….बस अफसोस जताकर शांत मुद्रा धारण कर लेते है मानो हमारा यही धर्म है सो निभा लिया।
शिक्षा माफिया पर नकेल कसने के समय-समय पर प्रयास होते रहे हैं। सरकार भी परीक्षा प्रणाली में बदलाव करती रही है, उसे जारी रखना चाहिए । सन् 1991 में उत्तर प्रदेश में नकल विरोधी कानून लागू किया था जिसकी आज भी परमावश्यकता है। पढ़े-लिखें बेरोजगारों को रोजगार के अवसर दिए जाए ताकि वो शिक्षा माफिया जैसे संगठित प्रसारित अपराध का हिस्सा न बनकर ,अपने देश की विकास प्रक्रिया में अपना योगदान दे सके। आधुनिक उपकरणों का उपयोग परीक्षाओं में वर्जित है ही, इसे ओर भी सख्ती से लागू किया जाना चाहिए। सभी शिक्षण संस्थाओं में ‘समान कार्य समान वेतन’ का फार्मूला अपनाया जाना चाहिए ताकी प्राइवेट शिक्षक भी सम्मानीय जीवन के साथ अपने दायित्वों का निर्वाह कर सके। केवल सरकार ही सब कुछ करेगी इस बात पर नहीं बल्कि हम सब कब कुछ कर पायेंगे या नहीं -इस बात पर जोर देना होगा। हमें अपनी सोच को विस्तार देना होगा। संगठित अपराधों के लिए संगठित होकर सर्जिकल स्ट्राइक होनी आवश्यक है। शिक्षा माफिया का सफाया होगा तभी परिश्रमी के साथ न्याय होगा और देश की उन्नति में सहायक जंाबाजों की संख्या में वृद्धि होगी।
ये बातें सुखद स्वप्न सरीखी हो सकती है पर इस सुखद स्वप्न को यदि हम खुली आंखों से देखें और जीएं तो भारतवर्ष की शिक्षण संस्थाएं विश्व की अग्रणी संस्थाओं के साथ खड़ी दीखेगी। अब गलत का अफसोस नहीं ….पुरजोर विरोध!!!……

इस लेख में शिक्षा माफिया के कारनामों को उजागर करने की कोशिश भर की गयी है। ये एक ऐसे संगठित आपराधिक तंत्र की रियल स्टोरी है जो भारत में भ्रष्टतंत्र का सहायक बना है। इससे मुक्त होना कैंसर से मुक्त होने जैसा होगा।
बस हम एक हो ,नेक हो, संगठित हो उस पर वार तो करें……..इस आशा के साथ कि ये मुद्दा नही मुहीम बने….सफाया शिक्षा माफिया का।
जय जननी ! जय जगत!!
-सत्येन्द्र कात्यायन
nakal mafia

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